सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

पेंशन तारीख




बड़ा बेटा रमेश सुबह ही बाबूजी के २० दिन से टूटे चश्मे की मरम्मत कराने के लिए घर से निकल पड़ा है ।
छोटा बेटा दिनेश महीने भर पहले कराये बाबूजी के खून जांच की रिपोर्ट लाने जा चुका है ।
बड़ी बहु बाबूजी का मन पसंद गाजर का हलुया बनाने में लगी हुयी है तो छोटी बहु ने कल रात ही बाबूजी का ४ दिन पहले टूटा कुर्ते का बटन लगा दिया था |
इन सब बदलाव को देख , हैरान बाबूजी ने दोपहर की नींद के बाद , संध्या वंदन किया ।

अपने खून जांच की रिपोर्ट से खुश, बटन लगे कुर्ते को पहन बाबूजी ने गाजर के हलुए का स्वाद लिया ।
जब बाबूजी मरम्मत किया चश्मा लगा बाहर टहलने निकलने लगे , उनकी नज़र दिवार पर झूलते कैलेंडर पर पड़ी ।
काले बड़े अंकों में दिखते तारीख ने याद दिलाया और सहसा मुंह से निकल पड़ा - "अरे हाँ ! कल तो पेंशन तारीख है । "

दुखी , मुस्कुराते चेहरे के साथ बाबूजी निकल पड़े ।

मंगलवार, 28 मई 2013

पार्टी



ढलती शाम के साथ हो रहे अँधेरे में छिप , उसी पुरानी सरकारी स्कूल के पीछे बहने वाले बड़े नाले के किनारे बनी आधी दीवार पर बैठ, अवि अपने सबसे करीबी दोस्त संतोष (संत्या) के साथ १.५ रूपये की पार्टी मना रहा था । ५० पैसे की शिन्गदाना की पूडिया , ५० पैसे की चकली और ५० पैसे की मसाला नल्ली । एक दूसरे से मन की बात बताते हुए और इन चटर - मटर की चीजों को खाते हुए दोनों को बड़ा मजा आ रहा था । १२ साल के अवि और १० के संत्या के बीच ४ साल से बड़ी गहरी दोस्ती थी । अक्सर महीने में २-३ बार दोनों की ऐसे पार्टी हुया करती थी । हर पार्टी का पैसा, समय और जगह एक ही होता, लेकिन हर बार खुशी और मजा ज्यादा ।

इस १.५ रूपये की कुछ ख़ास बात थी । यह उन दोनों के शरारती दीमाग के मेहनत की देन थी । अवि जिस गली में रहता था , उसक गली के लोगों का व्यवहार मिलनसार था । अक्सर वहां पड़ोस की औरतें अवि को कुछ सामान दूकान से लाने के लिए भेजा करती थी । संकोच से अवि कभी मना नहीं करता और काम किये जाता था । अवि और संत्या ने मिलकर इसका फायदा लेने की तरकीब निकालली । सामान लाने के लिए दिए गए रूपयों में से ५० पैसे तक की चोरी हुया करती थी याने ४ रूपये की दही ३.५० रुपाई की होती थी और बचे ५० पैसे दोनों की जेब में । इस तरह १.५० रूपये जमा हो जाने पर पार्टी हुया करती थी । १ साल से ज्यादा हो चुके थे और इसीतरह दोनों की गुप्त पार्टी हुए जी रही थी ।

पड़ोस की 'बीबी ' एक लम्बे कद की दमदार और जोरदार महिला थी । बूढ़े होने पर भी उसने अपने रुबाबदार मिजाज को बरसों से कायम रखा था । अवि को देख उसने ४ रूपये थमाते हुए कहा , " जा लोंगा की दूकान से ४ रूपये का बेसन ले आ " । अवि ने ५० पैसे की अपनी कमाई लेते हुये ३.५० रूपये के बेसन ला दे , खेलने भग गया । कीड़े पड़े बेसन ने बीबी को नाराज कर दिया । उसने अवि के घर पहुँच उसकी माँ से उसके होने के बारे में पूछा । अवि को ना पा , वह खुद ही लोंगा के दूकान पहुँची और बेसन लौटा दिए । बदले में मिले ३.५० रूपये ने बीबी के तेज दीमाग को फ़ौरन अवि की चालाकी का सन्देश दे दिया । १० मिनट में ही यह कहानी अवि के माँ के कानों में थी । देर शाम लौटने पर अवि के १ साल पुराने इस व्यवसाय का माँ की ४ चपेटों से अंत हुया ।

स्कूल के पीछे के उसी नाले की दीवार पर बैठ दोनों दोस्त बिना किसी पार्टी के आज बतीया रहे थे और बीते पार्टियों की यादों से मजे लिए जा रहे थे ।

२७-०५-२०१३

मंगलवार, 14 मई 2013

गाय और गाड़ी ?


६९ साल के परिपक्व उम्र ने राजाराम की दैनिक गतिविधियों को अनियमित कर रखा था और शाम के ४.३० बजे भी वो अपने पुराने बरामदे में हलके खर्राटे मार रहे थे । एकाएक बेटे सियाराम ने पास आकर हिलाते हुए जगाया और चिल्लाते हुए कहा ," आपकी मांग पूरी हो गयी है बाबूजी । " राजाराम ने आँख मीजते हुए कहा , " कौनसी ? " बेटे ने जवाब दिया ," वही घर के द्वार की शोभा बढाने वाली । चितकबरे रंग की , चार पैरों वाली , बड़ी - बड़ी आँखों वाली जिसकी आवाज भी दूर तक सुनायी देती हो । राजाराम की आलस से भरी आँखों में उत्साह भर आया । कांपते हाथों से आँखों पर चश्मा चढ़ा पास पड़े डंडे का सहारा ले , बेटे के साथ दरवाजे की तरफ चल दिए । परिवार और पड़ोसियों की हल्की भीड़ से रास्ता बना जैसे ही दोनों पहुंचे , बूढ़े बाप का झुर्रियों वाला चेहरा उतर सा गया । बेटे पर नारजगी के विनम्र शब्दों में कहा ," ये क्या है ? " बेटे ने मुस्कुराते हुए गर्व भरे शब्दों से जवाब दिया , " अरे ! यही तो है आपकी वह चीज । बड़ी - बड़ी हेड लाईट हैं , दूर तक सुनायी देने वाला हॉर्न भी । अपने चार पहियों से दौड़ते हुए सबको खुश कर देगी , है ना ? " राजाराम ने मन ही मन कहा ," मैंने तो गाय कहा था , यह तो गाड़ी है । "

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

मयूर नहीं पी काक


जून का पहला सप्ताह , सुबह का आसमान शाम की तरह धुंधला और मौन सा लग रहा था । मई की गर्मी का बुखार उतरने से हवा में कुछ ठंडक महसूस हो रही थी । करवट ले हंसते हुये नींद से जग रहे किसी बच्चे की तरह मौसम में बदलाव बड़ा प्यारा लग रहा था ।

खेत की पगडंडियों पर पैर जमाते हुए निशांत अपने मम्मी , पापा और भाई के साथ गर्मियों की छुट्टियां बीता कर, अपने गाँव से शहर की ट्रेन के लिए पास के स्टेशन की राह पर था ।

सुहावने मौसम में मस्त हुए मयूर पास के खेत में मानो धड़ - पकड़ का खेल खेल रहे थे । सहसा , निशांत की प्रकृति प्रेमी नज़रों ने उस झूंड को देख लिया और अपनी मम्मी के हाथ को खींच कर कहने लगा , " देखो देखो मयूर " । बेटे की देहाती जुबान को सून मम्मी ने झिझकते हुए सर पर एक हल्की चपत लगाते हुए कहा ," मयूर नहीं पी काक बोल , इसलिए इंग्लिश मीडियम में इतना पैसा देकर पढ़ा रहे हैं " ।

बगल से पापा ने मंद मुस्कान से समर्थन करते हुए परिवार के साथ राह पकड़ी ।

--अवनीश तिवारी
17-11-2012

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

गुनहगार




मिशल फ़र्नान्डिस सहमी और चिंता की निगाहों से अपने १२ बरस के बेटे ( ?) रोनी को चर्च की उतरती सीढ़ियों पर उछलते देख रही थी | पास बैठे रोनी के पिता जॉन ढलती शाम के साथ खामोश हो रहे आसमान की ओर मुंह उठाये , थके मन से कुछ सोच रहे थे | भाग्य से रूठे यादों ने बरसों पुरानी बातों को खुरेद कर रख दिया और फिर नापसंद घटनाओं की छवियाँ एक - एक कर सामने आने लगी |
१२ बरस पहले रोनी का जन्म लेना, मिशल का दुखभरी मातृत्व का निर्वाह करते रहना , जॉन और मिशल का हर कदम रोनी को किसी तीसरे से मिलने - जुलने को टालना ,
रोनी को दूर क़स्बे के स्कूल में भेजना , कुछ लोगों को पता चलने पर जॉन का अपने बैंक मेनेजर के पोस्ट से तबादला लेकर किसी दूसरे राज्य में आ बसना, हर कदम रोनी की निगरानी करना ... और बहुत कुछ ...|
रोनी के नपुसंक होने की समस्या आज भी उनके जीवन में पल और बढ़ रही है | दोनों किसी गुनहगार के तरह समाज में छिपे-छिपे रह रहें हैं, जी ( ? ) रहें हैं |


अवनीश तिवारी

०२-०२-२०१२

शुक्रवार, 11 मार्च 2011

पंडित और वेटर




अंकुर देर शाम अपनी पत्नी रमा और ४ साल की बेटी परी के साथ सैर करने निकले | लगभग २ घंटों के सैर से थकी , रमा ने रात का खाना ना बनाने और होटल में ही खाने की अपनी बात पर जोर दिया |

पत्नी के जिद का शिकार हुए अंकुर ने स्कूटर को पूजा होटल की राह पर मोड़ दिया |
होटल से २० कदम दूर ही स्कूटर खडी कर जब अंकुर आगे बढ़ा तो पास के मंदीर पर उसकी नजर पडी |

पत्नी से कहा , " चलो, आज सोमवार शिवालय में दर्शन कर लें | "
सपरिवार मंदिर में शिव पिंड के दर्शन कर, जब पंडित जी के पास पहुंचे तो पंडित ने सब के हाथों पर रक्षा की डोर बाँध , माथे तिलक लगा, आशीर्वाद के कुछ शब्द बुदबुदाये |
श्रद्धा ने सभ्यता को जगा दिया | विनम्रता से अंकुर ने ज्यों ५१ रूपये निकाल पंडित को देने बढे , कि रमा ने कोहनी से छूते हुए टोका, " ११ दीजिये, ५१ की क्या जरुरत है | "
रमा की लालच ने अंकुर की सभ्यता को जीत लिया और ११ रूपये ही पंडित को मिले |
होटल में खाने में कई लाजवाब डिश मंगाए गए | कुलाचा, पनीर - कढ़ाही, काश्मिरी पुलाव, पापड ... |
जब बिल की बारी आयी तो मानो ४५० रूपये का आंकड़ा खींस निपोरते अंकुर को चिढा रहा था |
शान सौकत के दबाव में जब अंकुर ने २५ रूपये निकाल वेटर को टिप्स देते हुए थेंक यू कहा, तो बेटी परी चिला उठी, " पापा, पापा, ११ दो , पंडित को भी इतना ही दिया ना "|
रमा ने परी के बांयें हाथ को पकड़ दबाया और आँखों के इशारे से अंकुर को २५ रूपये के साथ आगे बढ़ने की अनुमति दी |
होटल से निअकलते ही, पास के उस मंदिर के घंटे की आवाज से अंकुर का दिल फट सा गया और रमा मुंह में माउथ फ्रेशनर भरे स्कूटर पर बैठ गयी |

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

२६ जनवरी और पेट [लघुकथा]

अभी अभी नेताजी २६ जनवरी के कार्यक्रम से घर लौट सोफे पर बैठे थे कि उनका ४ साल का बेटा उनकी गोद में कूद चढ़ा और हाथ में लिए तिरंगे को दिखा तुतराने लगा, "पापा पापा ये तिलंगा बाहल से खालिदा"| नेताजी की पैनी नज़रों ने तिरंगे के नीचे के उनकी पार्टी के चिन्ह को पहचान लिया |
गुस्से में तिरंगे को खींच अपने सेक्रेटरी को दिखा गुर्राते हुए नेताजी ने कहा, "देखो अभी नीचे इन तिरंगों को उन कमीने गरीबों में बांटा और सालों ने पेट भरने के खातिर इसे २ मिनट में बेच भी दिया| हरामी के बच्चे पेट के वास्ते देश के झंडे को भी नहीं छोड़ते|"
सेक्रेटरी ने शंका और प्रश्न से भरी नज़रों से नेता को देखा और नेताजी झेंप गए|
पीछे से बच्चा चिल्लाते हुए दौड़ गया - "झंडा उंचा रहे हमाला ... "|

अवनीश तिवारी