शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

मयूर नहीं पी काक


जून का पहला सप्ताह , सुबह का आसमान शाम की तरह धुंधला और मौन सा लग रहा था । मई की गर्मी का बुखार उतरने से हवा में कुछ ठंडक महसूस हो रही थी । करवट ले हंसते हुये नींद से जग रहे किसी बच्चे की तरह मौसम में बदलाव बड़ा प्यारा लग रहा था ।

खेत की पगडंडियों पर पैर जमाते हुए निशांत अपने मम्मी , पापा और भाई के साथ गर्मियों की छुट्टियां बीता कर, अपने गाँव से शहर की ट्रेन के लिए पास के स्टेशन की राह पर था ।

सुहावने मौसम में मस्त हुए मयूर पास के खेत में मानो धड़ - पकड़ का खेल खेल रहे थे । सहसा , निशांत की प्रकृति प्रेमी नज़रों ने उस झूंड को देख लिया और अपनी मम्मी के हाथ को खींच कर कहने लगा , " देखो देखो मयूर " । बेटे की देहाती जुबान को सून मम्मी ने झिझकते हुए सर पर एक हल्की चपत लगाते हुए कहा ," मयूर नहीं पी काक बोल , इसलिए इंग्लिश मीडियम में इतना पैसा देकर पढ़ा रहे हैं " ।

बगल से पापा ने मंद मुस्कान से समर्थन करते हुए परिवार के साथ राह पकड़ी ।

--अवनीश तिवारी
17-11-2012

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