मंगलवार, 28 मई 2013

पार्टी



ढलती शाम के साथ हो रहे अँधेरे में छिप , उसी पुरानी सरकारी स्कूल के पीछे बहने वाले बड़े नाले के किनारे बनी आधी दीवार पर बैठ, अवि अपने सबसे करीबी दोस्त संतोष (संत्या) के साथ १.५ रूपये की पार्टी मना रहा था । ५० पैसे की शिन्गदाना की पूडिया , ५० पैसे की चकली और ५० पैसे की मसाला नल्ली । एक दूसरे से मन की बात बताते हुए और इन चटर - मटर की चीजों को खाते हुए दोनों को बड़ा मजा आ रहा था । १२ साल के अवि और १० के संत्या के बीच ४ साल से बड़ी गहरी दोस्ती थी । अक्सर महीने में २-३ बार दोनों की ऐसे पार्टी हुया करती थी । हर पार्टी का पैसा, समय और जगह एक ही होता, लेकिन हर बार खुशी और मजा ज्यादा ।

इस १.५ रूपये की कुछ ख़ास बात थी । यह उन दोनों के शरारती दीमाग के मेहनत की देन थी । अवि जिस गली में रहता था , उसक गली के लोगों का व्यवहार मिलनसार था । अक्सर वहां पड़ोस की औरतें अवि को कुछ सामान दूकान से लाने के लिए भेजा करती थी । संकोच से अवि कभी मना नहीं करता और काम किये जाता था । अवि और संत्या ने मिलकर इसका फायदा लेने की तरकीब निकालली । सामान लाने के लिए दिए गए रूपयों में से ५० पैसे तक की चोरी हुया करती थी याने ४ रूपये की दही ३.५० रुपाई की होती थी और बचे ५० पैसे दोनों की जेब में । इस तरह १.५० रूपये जमा हो जाने पर पार्टी हुया करती थी । १ साल से ज्यादा हो चुके थे और इसीतरह दोनों की गुप्त पार्टी हुए जी रही थी ।

पड़ोस की 'बीबी ' एक लम्बे कद की दमदार और जोरदार महिला थी । बूढ़े होने पर भी उसने अपने रुबाबदार मिजाज को बरसों से कायम रखा था । अवि को देख उसने ४ रूपये थमाते हुए कहा , " जा लोंगा की दूकान से ४ रूपये का बेसन ले आ " । अवि ने ५० पैसे की अपनी कमाई लेते हुये ३.५० रूपये के बेसन ला दे , खेलने भग गया । कीड़े पड़े बेसन ने बीबी को नाराज कर दिया । उसने अवि के घर पहुँच उसकी माँ से उसके होने के बारे में पूछा । अवि को ना पा , वह खुद ही लोंगा के दूकान पहुँची और बेसन लौटा दिए । बदले में मिले ३.५० रूपये ने बीबी के तेज दीमाग को फ़ौरन अवि की चालाकी का सन्देश दे दिया । १० मिनट में ही यह कहानी अवि के माँ के कानों में थी । देर शाम लौटने पर अवि के १ साल पुराने इस व्यवसाय का माँ की ४ चपेटों से अंत हुया ।

स्कूल के पीछे के उसी नाले की दीवार पर बैठ दोनों दोस्त बिना किसी पार्टी के आज बतीया रहे थे और बीते पार्टियों की यादों से मजे लिए जा रहे थे ।

२७-०५-२०१३

मंगलवार, 14 मई 2013

गाय और गाड़ी ?


६९ साल के परिपक्व उम्र ने राजाराम की दैनिक गतिविधियों को अनियमित कर रखा था और शाम के ४.३० बजे भी वो अपने पुराने बरामदे में हलके खर्राटे मार रहे थे । एकाएक बेटे सियाराम ने पास आकर हिलाते हुए जगाया और चिल्लाते हुए कहा ," आपकी मांग पूरी हो गयी है बाबूजी । " राजाराम ने आँख मीजते हुए कहा , " कौनसी ? " बेटे ने जवाब दिया ," वही घर के द्वार की शोभा बढाने वाली । चितकबरे रंग की , चार पैरों वाली , बड़ी - बड़ी आँखों वाली जिसकी आवाज भी दूर तक सुनायी देती हो । राजाराम की आलस से भरी आँखों में उत्साह भर आया । कांपते हाथों से आँखों पर चश्मा चढ़ा पास पड़े डंडे का सहारा ले , बेटे के साथ दरवाजे की तरफ चल दिए । परिवार और पड़ोसियों की हल्की भीड़ से रास्ता बना जैसे ही दोनों पहुंचे , बूढ़े बाप का झुर्रियों वाला चेहरा उतर सा गया । बेटे पर नारजगी के विनम्र शब्दों में कहा ," ये क्या है ? " बेटे ने मुस्कुराते हुए गर्व भरे शब्दों से जवाब दिया , " अरे ! यही तो है आपकी वह चीज । बड़ी - बड़ी हेड लाईट हैं , दूर तक सुनायी देने वाला हॉर्न भी । अपने चार पहियों से दौड़ते हुए सबको खुश कर देगी , है ना ? " राजाराम ने मन ही मन कहा ," मैंने तो गाय कहा था , यह तो गाड़ी है । "