मंगलवार, 14 मई 2013

गाय और गाड़ी ?


६९ साल के परिपक्व उम्र ने राजाराम की दैनिक गतिविधियों को अनियमित कर रखा था और शाम के ४.३० बजे भी वो अपने पुराने बरामदे में हलके खर्राटे मार रहे थे । एकाएक बेटे सियाराम ने पास आकर हिलाते हुए जगाया और चिल्लाते हुए कहा ," आपकी मांग पूरी हो गयी है बाबूजी । " राजाराम ने आँख मीजते हुए कहा , " कौनसी ? " बेटे ने जवाब दिया ," वही घर के द्वार की शोभा बढाने वाली । चितकबरे रंग की , चार पैरों वाली , बड़ी - बड़ी आँखों वाली जिसकी आवाज भी दूर तक सुनायी देती हो । राजाराम की आलस से भरी आँखों में उत्साह भर आया । कांपते हाथों से आँखों पर चश्मा चढ़ा पास पड़े डंडे का सहारा ले , बेटे के साथ दरवाजे की तरफ चल दिए । परिवार और पड़ोसियों की हल्की भीड़ से रास्ता बना जैसे ही दोनों पहुंचे , बूढ़े बाप का झुर्रियों वाला चेहरा उतर सा गया । बेटे पर नारजगी के विनम्र शब्दों में कहा ," ये क्या है ? " बेटे ने मुस्कुराते हुए गर्व भरे शब्दों से जवाब दिया , " अरे ! यही तो है आपकी वह चीज । बड़ी - बड़ी हेड लाईट हैं , दूर तक सुनायी देने वाला हॉर्न भी । अपने चार पहियों से दौड़ते हुए सबको खुश कर देगी , है ना ? " राजाराम ने मन ही मन कहा ," मैंने तो गाय कहा था , यह तो गाड़ी है । "

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