बड़ा बेटा रमेश सुबह ही बाबूजी के २० दिन से टूटे चश्मे की मरम्मत कराने के लिए घर से निकल पड़ा है ।
छोटा बेटा दिनेश महीने भर पहले कराये बाबूजी के खून जांच की रिपोर्ट लाने जा चुका है ।
बड़ी बहु बाबूजी का मन पसंद गाजर का हलुया बनाने में लगी हुयी है तो छोटी बहु ने कल रात ही बाबूजी का ४ दिन पहले टूटा कुर्ते का बटन लगा दिया था |
इन सब बदलाव को देख , हैरान बाबूजी ने दोपहर की नींद के बाद , संध्या वंदन किया ।
अपने खून जांच की रिपोर्ट से खुश, बटन लगे कुर्ते को पहन बाबूजी ने गाजर के हलुए का स्वाद लिया ।
जब बाबूजी मरम्मत किया चश्मा लगा बाहर टहलने निकलने लगे , उनकी नज़र दिवार पर झूलते कैलेंडर पर पड़ी ।
काले बड़े अंकों में दिखते तारीख ने याद दिलाया और सहसा मुंह से निकल पड़ा - "अरे हाँ ! कल तो पेंशन तारीख है । "
दुखी , मुस्कुराते चेहरे के साथ बाबूजी निकल पड़े ।
मुझे अच्छी लगी तो चोरी का मन बनाई
जवाब देंहटाएंआपकी लघुकथा को, पटना की संस्था "लेख्य-मंजूषा", उसकी त्रैमासिक छपने वाली "साहित्यिक स्पंदन" पत्रिका उसमें छापने के लिए ले जा रही हूँ
शीर्षक "स्वार्थ" रख रही हूँ
आपत्ति हो तो क्षमा चाहूँगी तुरन्त सूचित करें
आज ही 11 बजे छप जाएगी पत्रिका
लेकिन जितना जाना है उस हिसाब से सुझाव देने के लिए हिमाकत की हूँ