उम्र के ५० वें साल में भी सोमेश शुक्ल को आधुनिकीकरण का मर्ज लग गया था | दरसल, नए शहर में हुए तबादले ने उनके जीवन पर शहरीकरण का गहरा असर कर छोडा था | उनके बोल - चाल , रहन - सहन, सोच - विचार सबसे बनावट की सुगंध आने लगी थी | शहरी जीवन ने उनकी अब तक की विद्वता को उसी तरह ढँक लिया था जैसे बरसों से बंद किसी कमरे की मेज को धुल ढँक ले | सोमेश बाबू का यह अग्रसर पतन उन्ही तक सीमित ना होकर पूरे परिवार तक पहुँच चुका था | सरपर सवार इस भूत के कारण अपनी २१ बरस की बेटी की शादी उन्होंने एक श्रीमंत के बेटे से करने की ठान रखी थी | लड़का पक्ष सोमेश बाबू के कुल से निम्न था और धन सम्पन्नता के सिवाय और कोई विशेष गुणी कुल नहीं था |
कृपाशंकर दुबे एक विद्वान पंडित थे और सोमेश बाबू के समकक्ष भी | ज्योतिष विद्या का अच्छा ज्ञान होने के से सोमेश बाबू ने उन्हें अपनी बेटी और पसंद किये लडके की कुण्डली मिलाकर निर्णय बताने का काम दे रखा था |
कुल और गुणों की असमानता की बात दुबेजी को खटक रही थी | वे अपने भटके मित्र को चाह कर भी नहीं समझा पा सके | कुंडलियों के साथ दुबेजी अपने मित्र के घर पहुंचे | दरवाजे से ही भीतर से एक कर्कश आवाज़ आ रही थी | सोमेशजी दरवाजे पर बंधी अपनी अल्सेशियन कुतिया को बेतहासा बेंत से पीट रहे थे | आस - पास का माहौल कुतिया के तीखे स्वर से गूंज रहा था | दुबेजी के भीतर की मानवता ने सोमेशजी का हाथ पकड़ लिया और उन्होंने कहा ," जानवर है रहने दीजिये " ? सोमेशजी ने आवेश में उत्तर दिया ," २-३ रोज से बाहर के आवारा कुत्तों के साथ रहती है , यदि खराब नस्ल के पिल्लै हो गए तो बड़ी दिक्कत हो जायेगी " | अपने बहके मित्र को समझाने का मौका मिलते ही पंडित जी बोल पड़े ," आपको कुतिया की नस्ल की फिकर है लेकिन अपनी बेटी के बारे में ? वह नस्ल खराब होने से क्या होगा इसके बारे में सोचिये " | अपने आदरणीय मित्र के कटु शब्दों ने सोमेशजी के ह्रदय को भेद दिया | वे अन्दर चले गए | कुछ देर बाद लौटकर उन्होंने पंडितजी से कुण्डली पत्रिकाएं ली और अपने बदले निर्णय की सूचना दी |
अवनीश तिवारी
१२-०९-२००९
शनिवार, 12 सितंबर 2009
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आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है. आपके नियमित लेखन के लिए अनेक शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएंहृद्स्पर्शी लघुकथा.
जवाब देंहटाएंgood.narayan narayan
जवाब देंहटाएंहार्दिक स्वागत है. आपके नियमित लेखन के लिए अनेक शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएं'नस्ल' अगर केवल जाति के बन्धन तक सीमित है तो अनुचित और अप्रासंगिक है.यदि संस्कारों के सन्दर्भ में है तो स्वागत योग्य है.
जवाब देंहटाएंनिम्न जाती में विवाह न करवाने की बात समझ नहीं आई,
जवाब देंहटाएंपर अच्छा लिखा है, चिट्ठाजगत में स्वागत है,
भविष्य के लिए शुभकामनाएँ
Bahut Barhia... aapka swagat hai... isi tarah likhte rahiye
जवाब देंहटाएंPlease Visit:-
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ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. आपको पढ़कर बहुत अच्छा लगा. सार्थक लेखन हेतु शुभकामनाएं. जारी रहें.
जवाब देंहटाएं---
Till 25-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!
jati pratha ko badhava dene vali kahani....
जवाब देंहटाएंachhi nahin lagi.
-Devendra pandey.
mere khayal se jeewansathi ke rup men kisi ko chunne ka paimana sirf widwatta honi chahiye
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंआपको पढ़कर अच्छा लगा
शुभकामनाएं
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प्रिय तिवारी जी हिन्द युग्म पर मेरी गज़ल पढने हेतु आभार और आपने ठीक पहचाना कि वह शे‘र उस गज़ल का सबसे कमजोर शे‘र है ,परन्तु भाई उस गज़ल में एक आद्ब शे‘र तो अच्छा भी होगा उसपर भी आपकी नज़र तो गई होगी?
जवाब देंहटाएंखैर यह बात यहां तक
आपकी तीनो कहानियां पढ़ीं -सहज सरल भाषा में रोजमर्रा की घटनाओं के माध्यम से आपने अच्छा कहा है-बधाई
मेरी कुछ कहानियां युग्म पर भी हैं वाहक कहानी कार में जाकर देख पाएंगे,मेरे दो ब्लॉग भी आप चाहेंगे तो देख लेंगे मेरे प्रोफ़ाइल पर जाकर
हां यह word verification-टिप्पणी का दुश्मन होता है इसे ह्टा लें तो अच्छा रहेगा