मित्रों,
मुम्बई में एक शाम घटी एक छोटी सी घटना को एक लघुकथा के रूप में व्यक्त करने का प्रयास किया है |
कुछ समय दे कर पढिये |
वह गरीब है ना...
आज फ़िर दफ्तर के कामों में उलझे होने और बचे कामों को पूरा करने की तंग अवधि के कारण, दोपहर के खाने से दूर रहना पड़ा | सुबह का वह बैग शाम जाते समय भी उतना ही वजनदार था | काम पूरा हो जाने की खुशी पेट के भूख को भुला कर रह रह संतोष का पुट मष्तिष्क में छोड़ जा रही थी | यह संतोष मेरी चाल की तेजी में बदल मुझे अपने घर की ओर ले जा रही थी | एकाएक पास के चाट की दूकान पर नज़र पड़ी और भूक ने अपना मुंह उढा लिया | मन चाट का स्वाद लेने ललच पड़ा और मैं चाट की दूकान पर आ जमा | मै चाट के लिए कह कर खडा रहा | ४-६ जनों की मांग पहले से होने के कारण मेरा नंबर अभी नहीं आया था | इस बीच एक फटे हाल , कुछ अधिक उम्र का दुबला सा आदमी, पैरों के टूटते हुए चप्पलो को खींचते धीरे - धीरे बढ़ा आ रहा था | उसकी दीनता दूर से ही अपना परिचय दे रही थी | गहरे रंग के इस आदमी ने भी चाट के लिए कहा और मेरे समीप रूक मुंह लटका कर खड़ा हुआ | पास फेंकें गए चाट के जुठे पत्तलों को चाटने कई कुत्ते जमें थे | उनमें एक पिल्ला किसी ज्यादा भरे जुठे पत्तल को पा उसे तूफानी गति से चाटे जा रहा था | कोई दूसरा तंदुरुस्त कुत्ता उस पिल्लै को पत्तल चाटते देख उसकी तरफ़ झपटा और उसे काट भगाया | पिल्लै को पत्तल चाटने के लिए मिली इस सजा से हुए हल्ले से चौक और यह सब देख उस गरीब के ह्रदय की पीड़ा उसके मुंह तक आ गयी | वह कुत्ते की ओर अपने दाहिने हाथ की तर्जनी से निशाना लगा झुंझलाहट में बोल पड़ा - " ये उसे क्यों मारता है, वह गरीब है ना " | गरीबी की व्यथा से निकला यह दर्द सुन मैं सन्न सा रह गया | और लोग यह सब देख सुन उसे अनदेखा कर अपने अपने चाट में मस्त हो गए | दीनता की पुकार हर कोई नहीं समझ सकता | मै भी अपना चाट खा वहां से निकल पडा | वह क्षणिक घटना बार बार दीमाग में चोट करे जा रही थी, जिससे आहत मैं अब मंद गति से, किसी सोच में खो चला जा रहा था |
अवनीश तिवारी
२२-०३-२००९
शनिवार, 28 मार्च 2009
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sahi hai,gareebi,dukh har kisi ko nazar nahin aate
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