शुक्रवार, 11 मार्च 2011

पंडित और वेटर




अंकुर देर शाम अपनी पत्नी रमा और ४ साल की बेटी परी के साथ सैर करने निकले | लगभग २ घंटों के सैर से थकी , रमा ने रात का खाना ना बनाने और होटल में ही खाने की अपनी बात पर जोर दिया |

पत्नी के जिद का शिकार हुए अंकुर ने स्कूटर को पूजा होटल की राह पर मोड़ दिया |
होटल से २० कदम दूर ही स्कूटर खडी कर जब अंकुर आगे बढ़ा तो पास के मंदीर पर उसकी नजर पडी |

पत्नी से कहा , " चलो, आज सोमवार शिवालय में दर्शन कर लें | "
सपरिवार मंदिर में शिव पिंड के दर्शन कर, जब पंडित जी के पास पहुंचे तो पंडित ने सब के हाथों पर रक्षा की डोर बाँध , माथे तिलक लगा, आशीर्वाद के कुछ शब्द बुदबुदाये |
श्रद्धा ने सभ्यता को जगा दिया | विनम्रता से अंकुर ने ज्यों ५१ रूपये निकाल पंडित को देने बढे , कि रमा ने कोहनी से छूते हुए टोका, " ११ दीजिये, ५१ की क्या जरुरत है | "
रमा की लालच ने अंकुर की सभ्यता को जीत लिया और ११ रूपये ही पंडित को मिले |
होटल में खाने में कई लाजवाब डिश मंगाए गए | कुलाचा, पनीर - कढ़ाही, काश्मिरी पुलाव, पापड ... |
जब बिल की बारी आयी तो मानो ४५० रूपये का आंकड़ा खींस निपोरते अंकुर को चिढा रहा था |
शान सौकत के दबाव में जब अंकुर ने २५ रूपये निकाल वेटर को टिप्स देते हुए थेंक यू कहा, तो बेटी परी चिला उठी, " पापा, पापा, ११ दो , पंडित को भी इतना ही दिया ना "|
रमा ने परी के बांयें हाथ को पकड़ दबाया और आँखों के इशारे से अंकुर को २५ रूपये के साथ आगे बढ़ने की अनुमति दी |
होटल से निअकलते ही, पास के उस मंदिर के घंटे की आवाज से अंकुर का दिल फट सा गया और रमा मुंह में माउथ फ्रेशनर भरे स्कूटर पर बैठ गयी |

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

२६ जनवरी और पेट [लघुकथा]

अभी अभी नेताजी २६ जनवरी के कार्यक्रम से घर लौट सोफे पर बैठे थे कि उनका ४ साल का बेटा उनकी गोद में कूद चढ़ा और हाथ में लिए तिरंगे को दिखा तुतराने लगा, "पापा पापा ये तिलंगा बाहल से खालिदा"| नेताजी की पैनी नज़रों ने तिरंगे के नीचे के उनकी पार्टी के चिन्ह को पहचान लिया |
गुस्से में तिरंगे को खींच अपने सेक्रेटरी को दिखा गुर्राते हुए नेताजी ने कहा, "देखो अभी नीचे इन तिरंगों को उन कमीने गरीबों में बांटा और सालों ने पेट भरने के खातिर इसे २ मिनट में बेच भी दिया| हरामी के बच्चे पेट के वास्ते देश के झंडे को भी नहीं छोड़ते|"
सेक्रेटरी ने शंका और प्रश्न से भरी नज़रों से नेता को देखा और नेताजी झेंप गए|
पीछे से बच्चा चिल्लाते हुए दौड़ गया - "झंडा उंचा रहे हमाला ... "|

अवनीश तिवारी