शनिवार, 12 सितंबर 2009

खराब नस्ल

उम्र के ५० वें साल में भी सोमेश शुक्ल को आधुनिकीकरण का मर्ज लग गया था | दरसल, नए शहर में हुए तबादले ने उनके जीवन पर शहरीकरण का गहरा असर कर छोडा था | उनके बोल - चाल , रहन - सहन, सोच - विचार सबसे बनावट की सुगंध आने लगी थी | शहरी जीवन ने उनकी अब तक की विद्वता को उसी तरह ढँक लिया था जैसे बरसों से बंद किसी कमरे की मेज को धुल ढँक ले | सोमेश बाबू का यह अग्रसर पतन उन्ही तक सीमित ना होकर पूरे परिवार तक पहुँच चुका था | सरपर सवार इस भूत के कारण अपनी २१ बरस की बेटी की शादी उन्होंने एक श्रीमंत के बेटे से करने की ठान रखी थी | लड़का पक्ष सोमेश बाबू के कुल से निम्न था और धन सम्पन्नता के सिवाय और कोई विशेष गुणी कुल नहीं था |

कृपाशंकर दुबे एक विद्वान पंडित थे और सोमेश बाबू के समकक्ष भी | ज्योतिष विद्या का अच्छा ज्ञान होने के से सोमेश बाबू ने उन्हें अपनी बेटी और पसंद किये लडके की कुण्डली मिलाकर निर्णय बताने का काम दे रखा था |
कुल और गुणों की असमानता की बात दुबेजी को खटक रही थी | वे अपने भटके मित्र को चाह कर भी नहीं समझा पा सके | कुंडलियों के साथ दुबेजी अपने मित्र के घर पहुंचे | दरवाजे से ही भीतर से एक कर्कश आवाज़ आ रही थी | सोमेशजी दरवाजे पर बंधी अपनी अल्सेशियन कुतिया को बेतहासा बेंत से पीट रहे थे | आस - पास का माहौल कुतिया के तीखे स्वर से गूंज रहा था | दुबेजी के भीतर की मानवता ने सोमेशजी का हाथ पकड़ लिया और उन्होंने कहा ," जानवर है रहने दीजिये " ? सोमेशजी ने आवेश में उत्तर दिया ," २-३ रोज से बाहर के आवारा कुत्तों के साथ रहती है , यदि खराब नस्ल के पिल्लै हो गए तो बड़ी दिक्कत हो जायेगी " | अपने बहके मित्र को समझाने का मौका मिलते ही पंडित जी बोल पड़े ," आपको कुतिया की नस्ल की फिकर है लेकिन अपनी बेटी के बारे में ? वह नस्ल खराब होने से क्या होगा इसके बारे में सोचिये " | अपने आदरणीय मित्र के कटु शब्दों ने सोमेशजी के ह्रदय को भेद दिया | वे अन्दर चले गए | कुछ देर बाद लौटकर उन्होंने पंडितजी से कुण्डली पत्रिकाएं ली और अपने बदले निर्णय की सूचना दी |



अवनीश तिवारी
१२-०९-२००९